कुपोषण से लड़ रहे हैं भारत के बच्चे, डायबिटीज का भी खतरा

कुपोषण से लड़ रहे हैं भारत के बच्चे, डायबिटीज का भी खतरा

सेहतराग टीम  

पिछले दिनों देश के पहले कॉम्प्रिहेंसिव नेशनल न्यूट्रिशन सर्वे (CNNS) के नतीजे पेश किये गए थे, जो कि स्वास्थ्य कल्याण मंत्रालय ने जारी किये थे। जिसमें कि 0-19 वर्ष की उम्र के बच्चों में पौष्टकिता की जांच के लिए सर्वे किया गया था। इस सर्वे के अनुसार भारत में 5 साल की उम्र से कम उम्र वाले बच्चों में 35 प्रतिशत बच्चे स्टंटिंग (ऐसे हैं जिनकी हाइट उनकी उम्र के मुताबिक कम है।) 17 प्रतिशत बच्चे वास्टिंग ( ऐसे हैं जिनकी वजन लम्बाई की तुलना में कम है।) और 33 प्रतिशत बच्चे अंडरवेट (ऐसे हैं जिनका वजन उम्र और लम्बाई के मुकाबले कम है।)

इस सर्वे को 2016-2018 में यूनिसेफ के मदद से कराया गया था जो कि देश के 30 राज्यों व केंद्र शासित राज्यों पर हुआ था। इस सर्वे में 0-19 उम्र के 1 लाख 12 हजार बच्चों व किशोरों पर विश्लेषण किया गया और 51 हजार से ज्यादा बायोलॉजिकल सैंपल भी लिए गए ताकि बच्चों का माइक्रोन्यूट्रियंट लेवल जांचा जा सके और नॉन-कम्यूनिकेबल डिजीज के लिए होने वाले जोखिम को चेक किया जा सके।

वैसै CNNS के आंकड़ों के मुताबिक कुपोषण की समस्या थोड़ी कम हुई है। 1-4 वर्ष की आयु के बच्चों में विटमिन A और आयोडीन की कमी की रोकथाम के लिए चलाए जा रहे सरकारी कार्यक्रमों का भी सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। हालांकि सर्वे में चेताने वाले आंकड़े भी हैं जो दर्शाते हैं कि बच्चों और किरोशों में ओवरवेट और ऑबेसिटी की समस्या लगातार बढ़ रही है जिससे नॉन-कम्यूनिकेबल डिजीज जैसे डायबीटीज का खतरा (10 फीसदी) तक रहता है।

आंकड़े जारी होने के बाद इस बात पर जोर दिया जा रहा है कि किस तरह इस डेटा का एनालिसिस कर बाल कुपोषण को जड़ से खत्म करने और गैर-संचारी रोगों (नॉन-कम्यूनिकेबल डिजीज) के खतरों को रोकने के लिए प्रभावशाली कार्यक्रम बनाए जाएं। स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने राष्ट्रीय सर्वे में जारी आंकड़ों को महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि इससे बच्चों व किशारों में कुपोषण व गैर-संचारी रोगों से लड़ने और इन्हें खत्म करने के लिए मजबूत नीतियों व कार्यक्रमों को बनाने में मदद मिलेगी। यूनिसेफ में भारत के प्रतिनिधि डॉ. यासमिन अली हक ने कहा, 'सीएनएनएस के आंकड़े हैरान करने वाले हैं इससे बच्चों की जिंदगियां बचाने और प्रत्येक बच्चे को पूर्ण रूप से समर्थ बनाने का हमारा संकल्प और मजबूत हुआ है और यह साफ हुआ है कि इस ओर तेजी से काम किए जाने की जरूरत है।

सर्वे की मुख्य बातें-

पोषण अभियान 2018-22 के महत्वाकांक्षी लक्ष्य है जिसमें सालाना बच्चों में कुपोषण की समस्या (स्टंटिंग और ओवरवेट) कम हो और लो-बर्थ वेट यानी जन्म के समय कम वजन की समस्या को भी सालाना 2 प्रतिशत तक कम किया जाए। इसके अलावा, सभी आयु वर्गों में अनीमिया को प्रति 3 प्रतिशत तक कम करना भी पोषण अभियान का मुख्य लक्ष्य है जिसे भारत में पोषण के लिए व्यापक स्तर पर जन आंदोलन चलाकर हासिल किया जाएगा। सीएनएनएस के आंकड़े बताते हैं कि स्कूल जाने की आयु वाले बच्चों और किशोरों पर अभी भी कुपोषण का खतरा है और बहुत से क्षेत्रों में अभी भी काफी काम करने की जरूरत हैः

10-19 वर्ष के प्रत्येक 4 में से 1 किशोर अपनी आयु की तुलना में दुबला है।

10-19 आयु के 5 फीसदी किशोर ओवरवेट हैं या मोटापे का शिकार हैं।

कुपोषण के अलावा देश में हर आयु वर्ग के बच्चों, किशोरों और महिलाओं में अनीमिया पीड़ितों की बढ़ती संख्या भी देश के लिए चिंता का विषय है। कई स्टडीज से यह साबित हुआ है कि खानपान की खराब आदतें जैसे आयरन व विटमिन सी से भरपूर भोजन (फल व सब्जियां) न खाना और स्वास्थ्य सेवाओं तक सीमित पहुंच अनीमिया के बड़े कारण हैं। सीएनएनएस के अनुसार अनीमिया छोटे बच्चों और किशोर लड़कियों को सबसे अधिक प्रभावित करता है:

दूसरे आयुवर्ग के मुकाबले अनीमिया की समस्या 1-4 साल के बच्चों में काफी ज्यादा (41 प्रतिशत तक) है।

सर्वे में 1-4 साल के 41 प्रतिशत बच्चे, 5-9 साल के 24 प्रतिशत और 10-19 आयु के 29 प्रतिशत किशोर अनीमिक पाए गए। - अनीमिया के पोषण संबंधी अन्य कारणों में जैसे विटमिन बी 12 भी बच्चों में चेक किया गया। सर्वे में शामिल 1-19 साल के बच्चों में विटमिन बी-12 की कमी 14-31 प्रतिशत तक पाई गई जिसमें किशोरों की संख्या ज्यादा थी।

स्कूल जाने वाले बच्चों में नॉन-कम्यूनिकेबल डिजीज का रिस्क पाया गया जिसमें 10 पर्सेंट बच्चे प्री-डायबिटीज और हाई ट्राइग्लिसराइड के लक्षण नजर आए। 4 फीसदी किशोरों में हाई कोलेस्ट्रोल और बैड कोलेस्ट्रोल और 5 फीसदी किशोरों में हाई ब्लडप्रेशल पाया गया।

(साभार- नवभारत टाइम्स)

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